फुरसत की बतोलेबाजी का रोजनामचा
भिया बोले…
अनिल कर्मा
बतोलेबाजी के ठिये पर आज मौसम से होते हुए चर्चा सरहद पार जा पहुंची है। तर्क हैं , जानकारियां हैं , वाद-विवाद है, मस्ती है .… और भिया तो हैं ही। तो चलिए , सुनते हैं आज क्या बोल रहे हैं भिया-भिया बोले : यह सत्ता और तेल का
खेल है , इस खेल में कई पोल है
-इस बार तो गर्मी ने पका डाला यार। बारिश आ ही नी री।
-आएगी प्यारे , थोड़ा तप ले तो निखर जायेगा।
-निखर नी बिखर जायेंगे। पापड़ जैसे सीक गए यार।
-भिया लोगों , तुम इसी गर्मी से परेशान हो रिये हो। दुनिया जल री है यार। इराक को देख लो। अफगान को देख लो। पाकिस्तान जल रहा है। साला लगता है पूरी दुनिया में ही आतंक की आग फ़ैल गई है।
-कोई दुनिया-वुनिया में नी फ़ैल री। खुद के ही पैदा किये भस्मासुर हैं. भुगतें अब।
-अरे पर भुगतना तो सबको पड़ेगा न भाई। दुनिया अब जिस तरह से जुड़ी है न एक दूसरे से, बचना मुश्किल है किसी का भी।
-पर ये इराक में तो अचानक ही खलबली मच गई यार।
इलस्ट्रेशन - कुमार |
-नहीं , अचानक नी । ये पुराना दबा हुआ लावा है।
-आतंक का क्या लावा भैये । सिरफिरों का काम है ये तो। जब चाहो हथियार उठा लो । हो जाओ शुरू।
-हाँ , हाँ सिरफिरों का ही काम है । पर उन्हें जमीन कौन देता है? जब तक आम आवाम का साथ न हो , कोई आतंक फल -फूल नहीं सकता।
-ये फ़िल्मी बातें छोड़ भैये। ''जनम से कोई आतंकी नहीं होता'' यह डायलॉग सिर्फ फिल्मों में ही अच्छा लगता है। पूरी की पूरी पौध जनम ले रही है आतंक की।
- और ये भी तो है कि इराक में तो आवाम भी आतंक के खिलाफ खड़ी है। महिलाओं- बच्चों तक ने बंदूकें उठा ली हैं। ऐसे में आतंकियों का साथ कौन देगा भला?
- अरे पगले , वो आवाम का एक धड़ा है।
-मतलब दूसरा धड़ा आतंकियों के साथ है ? पर सद्दाम के बाद में अब कैसी धड़ेबाजी। अब तो वहां व्यवस्थित सरकार है।
- यही तो … , समझता है नहीं। बक-बक करवा लो बस।
-बता-बता यार , ज्ञान पिला जरा इसको। बहुत जरुरत है । ये सद्दाम से आगे बढ़ा ही नहीं।
- सुन मेरे भाई , यह मूल रूप से उपेक्षा और भेदभाव से जंन्मे विद्रोह की कहानी है। शिया और सुन्नी की बदली हुई बाज़ी है। तू इसको सद्दाम से ही समझ। देख, सद्दाम सुन्नी था। तानाशाह था। उसने शिया और कुर्दों पर खूब अत्याचार किए। सद्दाम के पहले भी यही होता रहा था।
-पर सद्दाम को तो अमेरिका ने निपटाया।
- हाँ, भई। दरअसल अमेरिका ने खेल किया। उसने दुनिया को तो ये बताया कि उसकी मंशा इराक के तानाशाही शासन की जगह लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाने की है। पर दबे कुचले शियाओं को कान में ये कहा कि सुन्नियों के अत्याचारी शासन का अंत कर वह सत्ता उन्हें सौप रहा है।
-अच्छा ?
-हाँ , और हुआ भी वही। सद्दाम को फाँसी पर चढ़ाकर इराक में शिया हुकूमत स्थापित कर दी।
-तो अब सुन्नी फिर सत्ता चाहते हैं क्या? इसीलिए सलटा रहे हैं शियाओं को। मारकाट मचा रखी है।
- हाँ , यार। तू समझ तो जाता है , पर थोड़ी प्रॉब्लम है। नतीजे भोत जल्दी निकाल लेता है।
- ओय, ओय … होशियार मत बन ज्यादा। इधर-उधर से पढ़ के ज्ञान बाँट रहा है। अभी जूनी इंदौर की गलियों में छोड़ आऊंगा न , तो निकल भी नी पायेगा बेटा , वहीं घूमता रह जायेगा।
- ओ , जूनी इंदौर। देश -दुनिया को भी समझ ले जरा। सुना प्यारे सुना। तू तो ये बता ये सुन्नी एकदम हिंसक क्यों हो गए?
-वही बता रहा था शुरू में। एकदम हिंसक नहीं हुए। क्या हुआ कि जब शिया सत्ता में आये तो उन्होंने वही करना शुरू कर दिया जो पहले सुन्नी कर रहे थे। सुन्नी अलग-थलग कर दिए गए। भेदभाव होने लगा। तो धीरे-धीरे सुन्नी विद्रोही होने लगे।
-अच्छा!
- हाँ , और इनके विद्रोह को हवा दी अलकायदा से जुड़े आतंकी संगठन आईएसआईएस (द इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड ग्रेटर सीरिया ) ने। अबु बकर अल बगदादी इसका प्रमुख है.। इतना खूंखार कि उसको नया बिन लादेन कहा जाता है। पूरी की पूरी सेना खड़ी कर ली है उसने। 10 हजार लड़ाके हैं उसके पास।
- अच्छा तो अपने यहाँ के नक्सलवाद जैसा है मामला ?
- ठीक-ठीक वैसा तो नहीं , पर कहानी वही है। किसी को उसका हक़ नहीं दोगे , ज्यादा दबाओगे तो लावा ऐसे ही निकलेगा।
- हाँ , पर फिर भी बन्दूक उठाना तो गलत ही है न यार। देश की सेना को ही मार रहे हैं।
- गलत तो है ही , पर बन्दूक पहले किसने किस पर उठाई , यह भी तो मुद्दा
है न।
(अब भिया ने लम्बी हुंकार भरी )
भिया बोले- यह सब सत्ता और तेल की लड़ाई है भय्यू। शिया हो, सुन्नी हो या कुर्द.… सब एक ही धारा में हैं -राजनीतिक इस्लाम। यह प्रभुत्व के लिए इस्लाम का आंतरिक संघर्ष है। सीरिया-इराक-लेबनान में भी यही संघर्ष है और पाकिस्तान में भी। सऊदी अरब जैसे देश इस आग में घी डाल रहे हैं। इन सबके बीच अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश तेल का खेल खेल रहे हैं। इस खेल में कई पोल हैं। भाई लोगों, पूरी दुनिया की सुरक्षा सवालों के घेरे में है … इसको समझो। तेल देखो , तेल की धार देखो।
Pls give your opinion....
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