शनिवार, 5 अप्रैल 2014

आज की लघुकथा... ढलान

अनिल कर्मा


19 साल का  बिछोह। ...अपनी-अपनी दुनिया में रम चुके दोनों अनायास मिल गए। समय ने मानो रिवर्स गियर लगा दिया हो। कॉलेज.. कैंटीन .. सिनेमा.. पार्क .. हाथ में हाथ.. साथ जीने-मरने के वादे-इरादे....।...मगर होठों पर चाय के जोरदार चटके ने समय को फिर आज में लौटा दिया। थोड़ी मुस्कराहट फैली, फिर शाम औपचारिक हो गई।

थोड़े दिन बाद फिर शाम हुई और उसके  थोड़े दिन बाद फिर।...फिर रोज होने लगी। फर्क इतना कि हर शाम पिछली शाम से थोड़ी ज्यादा उघड़ी हुई...और रात से थोड़ी ज्यादा सटी हुई।

ऐसी शामों के बीच दोनों ने महसूस किया  कि उम्र के ढलान पर तेजी से क़ुछ   फिसल रहा है। क़ुछ  ऐसा जिसे उम्र और ऊर्जा के पर्वत पर दोनों ने पूरी श्रद्धा से थामे रखा था...।

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