सोमवार, 23 जून 2014

  फुरसत की बतोलेबाजी का रोजनामचा

  1. भिया बोले

अनिल कर्मा 


हमारे मालवा-निमाड़ में शाम से लेकर रात तक का फुरसत का समय आम तौर पर ओटलों, चौराहों या चौपाटियों पर बीतता है …। काम एक ही, बतोलेबाजी। शयानी भाषा में इसको किस्सागोई कहते हैं.। यहाँ की रातें मौसम के कारण तो सुहानी होती ही हैं , ये बेसिरपैर के किस्से उन्हें और मस्ती दे देते हैं.।  पर हाँ ,इसी में  से कुछ सार्थक भी निकल आता है। …तो साहब हमारा भी ऐसा ही एक ठिया है भड़ास निकलने का.। खूब बोलो बको। कैसा भी , कहीं का भी मसाला हो , बस शर्त एक ही है कि कचोरी की चटनी की तरह बात जायकेदार होनी चाहिए। भिया लोगों को मजा आना चाहिए। वहां पर एक बड़े वाले भिया हैं। उनके बोलों अौर कानों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है ।  आजकल के कान जो कभी नहीं सुनना चाहते वह भिया जरूर बोलते हैं।  डीटीएच की तर्ज पर उनका मामला डीएफएच है - डायरेक्ट फ्रॉम हार्ट। हार्ट और जुबान के बीच जो छलनी लोग अक्सर लगा लेते हैं, उसे भिया ने उसी तरह निकालकर फेंक दिया है जैसे बीसीसीआई से श्रीनिवासन को निकाला गया। … तो भिया ऐसा है कि भिया तो बोलेंगे और दिल से बोलेंगे। चलिए , सुनते हैं आज क्या बोल रहे हैं भिया-


आज की पोस्ट

  भिया बोले : ये एक आने की सीख ऑक्सफ़ोर्ड में   नहीं, रोड पर मिलती है भय्यू 

 

नी-नी करके एक महीना होने को आया यार नई सरकार को भी। ढाक के तीन पात ही हैं। रोज़ नए मंत्र लेकर आ जाते हैं मोदी।  कभी मंत्रियों को , कभी अफसरों को।  
 
अरे  अभी भूटान गए भैया तो वहाँ भी भइया बी  टू बी का  मंत्र दे आए.
समझ में नी आता प्रधानमंत्री हैं या प्रधान मंत्र। 
 
मंत्र नहीं प्यारे सिद्धांत हैं. आदर्श हैं.संस्कार हैं . अब तक किसी प्रधानमंत्री को  देखा है संसद की चौखट पर माथा टेकते हुए ?
इलस्ट्रेशन - कुमार
 
नी भैया ऐसी नौटंकी तो नी देखी। 
 
अरे अब काहें की नौटंकी। पूरा देश मोदी के साथ खड़ा है। 
 
हाँ , पर ऐसा करके फोटो तो छपवा ही लिया न दुनियाभर में. 
 
भैये , फोटो ही छपवाना रहता तो भूटान यात्रा पर हवाई जहाज भर के पत्रकारों को साथ ले जाते न। एक को भी नी ले गये।  
 
क्या करना? क्यों ले जाएँ ? यही तो अदा है मोदी की।  देखो , फिर भी कितना कवरेज मिला दुनियाभर में।  चीन भी खुश हुआ। 
 
हाँ , बन्दे में दम तो है। 
 
सुना है अफसर परेशान हो गए हैं पीएमओ के ।  
 
होंगे ही न।  मक्कारी चढ़ी थी। अब मोदी खुद 15 घंटे काम करते हैं तो भैया अफसरों को भी करना ही पड़ेगा न।  
 
कोई  कह रहा था चार ही घंटे सोता है हमारा प्रधानमंत्री।  
 
आज से नहीं, कई सालों से।  संघ के कड़े अनुशासन में बड़ा हुआ है यार। 
 
अरे एक घंटा योग करके सब बराबर कर लेता है भैया।  हमेशा चुस्त दुरुस्त।  
 
हाँ , पर काम तो मनमोहन ने भी किया यार. टीम बेकार थी।  साथ नी दिया। 
 
भिया, रायता ढोलना भी काम ही होता है। पर नतीजा क्या? 10 जनपथ के चक्कर ही तो लगाये 10 साल तक। 
 
नहीं यार, ये तो मानना पड़ेगा कि वेल एजुकेटेड आदमी था। कभी जुबान नी लड़खड़ाई।  मोदी भूटान को नेपाल बोल जाते हैं , लद्दाख बोल जाते हैं. तक्षशिला को बिहार में बताते हैं. क्या है यार ये ? 
 
  अरे तो भूटान को नेपाल बोलने से वह नेपाल तो नी बन जाता न। पटा तो लिया न सबको। क्या भूटान , क्या पाकिस्तान और क्या अमेरिका। गट्स चाहिए बॉस।  एजुकेशन को क्या कढ़ी में डालें। 

क्यों , सिंपल सी नौकरी के लिए बीएड / डीएड /पीएचडी  सब  चाहिए और प्रधानमंत्री पत्राचार से एमए किया हुआ भी चलेगा।  क्यों भई ?

अरे ऑक्सफ़ोर्ड और कैम्ब्रिज वाले भी बिठा के देख लिए।  क्या किया? गर्त में ही ले गए न देश को बाबू ही सरकार चलाते  रहे।  अब देखो , कैसी नकेल कसी है मोदी ने।  भैया मंत्री भी निजी स्टाफ अपनी मर्जी से नी रख सकता।  यानी मनमर्जी नहीं चलेगी।

कुछ भी कहो यार।  एजुकेशन की प्रॉब्लम तो है नई सरकार मे। एचआरडी मंत्री बीए है या बीकॉम इसी में कन्फूजन है।  क्या कर पायेगी वो शिक्षा के लिए? सरकार है कि एकता कपूर का सीरियल ? 

करेगी बेटा , काम भी करेगी।  डिग्री नहीं , दिमाग चाहिए रहता है काम करने के लिए।  अब रेल मंत्रालय के लिए क्या योग्यता जरूरी  मानता है तू बता ? कुछ भी बस।  

हाँ तो करके दिखाए न।  कौन सा सुधार आ गया ? कौन सी महंगाई काम हो गई ? रेल किराया तो बढ़ ही गया, अब शकर भी महँगी होने वाली है , पेट्रोल भी।  

सब पुरानो का किया धरा है। और फिर बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को सुधारना कोई हलवा खाने जैसा काम तो है नहीं कि मुँह में रखा और गप्प।  गरीब के लिए तड़प तो है न बन्दे में।  वैसी तड़प पिछले दस साल में देखी  हो तो बता ? 

( अब तक चुपचाप सुन रहे बड़े भिया अचानक चर्चा में कूद पड़े।  )

ये सही है भय्यू। अरे गरीब के लिए धड़कने वाला दिल स्कूल-कॉलेज में नी बनता।  एक आने में एक चाय बेची है मोदी ने।  सब  जानता है वो , गरीबी क्या ? लाचारी क्या? एक आने की सीख ही सब करवाएगी उससे।  ये सीख ऑक्सफ़ोर्ड में नहीं, रोड पर मिलती है भय्यू।  ये जिगर देती है और जिंदादिली भी।  बाकी तो शिक्षा ने बाबू ही बनाये हैं , यस सर -यस मैम वाले।  

अरे आगे  की पीढ़ी को सम्भालो।  रोड की सीख  लेने दो बच्चों को।  खुले में साँस लेने दो। उड़ान के लिए आसमान दो उनको।  घर घुस्सू मत बनाओ बच्चों को। मोदी कोई आदर्श नहीं , पर यस सर, यस मैम वालों से बेहतर हैं।  


 
 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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