अनिल कर्मा
वह गणित में अक्सर शून्य नंबर लाता था। मेरा दोस्त। पर अब पकी उम्र में उसका जोड़-बाकी पक्का हो गया लगता है। पिछले दिनों उसने एक हिसाब समझाया। मैं चकरा गया। बोला- घर में भी पिता पर हजार रुपए से ज्यादा ही खर्च हो जाते थे। वृद्धाश्रम में भी इतना ही दान देना पड़ रहा है। यानी जीरो लॉस। पत्नी भी खुश। मैंने कहा- 'यार, उनकी उम्र ज्यादा है। वृद्धाश्रम में अकेलापन लगा तो..। तबीयत बिगड़ गई तो..। कुछ हो गया तो..।Ó उसने सपाट जवाब दिया- 'कुछ भी सोचकर हल्ला मत कर। जब तक ऐसा कुछ नहीं होता है, तब तक तो जीरो लॉस है ना।Ó
यह तय मानिए कि अंकों से अनजान इस नादान को यह अंकगणित घर की राजनीति ने सिखाया होगा। सियासत के गणित में संवेदनाओं से ज्यादा 'समझदारीÓ के अंक होते हैं। फिर चाहे सियासत घर की हो, समाज की या देश-परदेश की। इसी 'समझदारीÓ के चलते व्यक्ति अकेला हुआ जा रहा है, परिवार सिकुड़ रहे हैं, समाज बंट गया और सरकार निरंकुश हो चली है। इसी 'समझदारीÓ ने मूल्यों का गणित गड़बड़ा दिया है। शून्य को दाएं-बाएं ऊपर-नीचे कर नया छलशास्त्र रचा जा रहा है। लाखों की गड़बड़ी। करोड़ों का घोटाला । अरबों का कालाधन। ऐसा कोहराम मचा है कि जिसके मन में जितना आ रहा है उतने शून्य लगाकर आंकड़ा बयां कर रहा है। इतना नुकसान। इतना फर्जीवाड़ा...। विपक्ष का काम आसान। जितने ज्यादा शून्य, उतना ज्यादा हंगामा। बेहिसाब। बेमियाद। और सरकार? सरकार भी कम नहीं। उसके अपने शून्य हैं। महाशून्य प्रधानमंत्री। बोलते ही नहीं। हजारों जवाबों से अच्छी मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी...वाह भई वाह। और शून्य के खिलाड़ी मंत्रीगण। गजब का हिसाब सीखाने लगते हैं। 'जब स्पेक्ट्रम आवंटन में कोई नीति बनी ही नहीं, तो कैसा घाटा? जब कोयले का खनन हुआ ही नहीं, तो कैसा नुकसान? यानी जीरो लॉस।Ó कैसा गणित है भैया? जीरो लॉस है तो क्या स्पेक्ट्रम और कोयला खदानों के आवंटन सरकार ने महज मन बहलाने के लिए किए थे? क्या देश लॉस होने की राह तके ? जब लुट जाए तब आए आपके पास?
एक और जीरो-थ्योरी पर आप माथा पकड़ सकते हैं। हर सरकार में बार-बार कहा जाता रहा है कि अब आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाएगी। पर सच क्या है? अफजल गुरू की फांसी को लटकाते-लटकाते और कसाब को बिरयानी खिलाते-खिलाते वर्षों बीत गए । 26-11 के बाद देश में चार बड़े आतंकी हमले हो चुके। सुरंग, समुद्र सब तरफ से आतंकी देश में आ रहे हैं। ये कैसा जीरो टॉलरेंस है, सरकार? आपका जीरो इतना बड़ा क्यों है?
एक स्वयंभू विकासपुरुष हैं। नरेंद्र मोदी। उन्होंने तो अपने सूबे का कुपोषण छिपाने के लिए जीरो की आड़ ले ली। कहा- 'जीरो फिगर के लिए लड़कियां खाती-पीती नहीं हैं और इसलिए दुबली दिखने लगती हैं।Ó अगर ऐसा है तो गरीबी का फिगर जीरो क्यों नहीं हो रहा, सीएम साहब। वह क्यों मुटिया रही है? भूख क्यों लाचार है फैलने के लिए?
आर्यभट्ट ने जब दुनिया को शून्य दिया तब उन्हें अंदाजा भी नहीं होगा कि इसके इतने भीषण प्रयोग होंगे। पहले गणित में शून्य था। अब शून्य में गणित हो रहे हैं। सबके अपने-अपने गणित । पहले शून्य समाधान था। अब शून्य सवाल है। हर शून्य का अपना सवाल। किसी के साथ जुड़कर उसे बड़े से बड़ा बना देने वाला शून्य, खुद कितना ही छोटा रहा हो, पर इतना असहज, असहाय और अनमना पहले कभी नहीं रहा होगा। उसे हर कदम पर ठगा जा रहा है। अगर आप संवेदना शून्य नहीं हैं, तो आइए शून्य के इस संधिकाल में उसके साथ खड़े हों। उसे भरोसा दिलाएं कि उसका ऐसा मखौल नहीं बनने देंगे। ध्यान रहे, शून्य सिर्फ अंक या शब्द नहीं है। शून्य सृष्टि का आदि है और अंत भी। और इन दोनों बिंदुओं के बीच यह समय के रथ का पहिया है।
यह तय मानिए कि अंकों से अनजान इस नादान को यह अंकगणित घर की राजनीति ने सिखाया होगा। सियासत के गणित में संवेदनाओं से ज्यादा 'समझदारीÓ के अंक होते हैं। फिर चाहे सियासत घर की हो, समाज की या देश-परदेश की। इसी 'समझदारीÓ के चलते व्यक्ति अकेला हुआ जा रहा है, परिवार सिकुड़ रहे हैं, समाज बंट गया और सरकार निरंकुश हो चली है। इसी 'समझदारीÓ ने मूल्यों का गणित गड़बड़ा दिया है। शून्य को दाएं-बाएं ऊपर-नीचे कर नया छलशास्त्र रचा जा रहा है। लाखों की गड़बड़ी। करोड़ों का घोटाला । अरबों का कालाधन। ऐसा कोहराम मचा है कि जिसके मन में जितना आ रहा है उतने शून्य लगाकर आंकड़ा बयां कर रहा है। इतना नुकसान। इतना फर्जीवाड़ा...। विपक्ष का काम आसान। जितने ज्यादा शून्य, उतना ज्यादा हंगामा। बेहिसाब। बेमियाद। और सरकार? सरकार भी कम नहीं। उसके अपने शून्य हैं। महाशून्य प्रधानमंत्री। बोलते ही नहीं। हजारों जवाबों से अच्छी मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी...वाह भई वाह। और शून्य के खिलाड़ी मंत्रीगण। गजब का हिसाब सीखाने लगते हैं। 'जब स्पेक्ट्रम आवंटन में कोई नीति बनी ही नहीं, तो कैसा घाटा? जब कोयले का खनन हुआ ही नहीं, तो कैसा नुकसान? यानी जीरो लॉस।Ó कैसा गणित है भैया? जीरो लॉस है तो क्या स्पेक्ट्रम और कोयला खदानों के आवंटन सरकार ने महज मन बहलाने के लिए किए थे? क्या देश लॉस होने की राह तके ? जब लुट जाए तब आए आपके पास?
एक और जीरो-थ्योरी पर आप माथा पकड़ सकते हैं। हर सरकार में बार-बार कहा जाता रहा है कि अब आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाएगी। पर सच क्या है? अफजल गुरू की फांसी को लटकाते-लटकाते और कसाब को बिरयानी खिलाते-खिलाते वर्षों बीत गए । 26-11 के बाद देश में चार बड़े आतंकी हमले हो चुके। सुरंग, समुद्र सब तरफ से आतंकी देश में आ रहे हैं। ये कैसा जीरो टॉलरेंस है, सरकार? आपका जीरो इतना बड़ा क्यों है?
एक स्वयंभू विकासपुरुष हैं। नरेंद्र मोदी। उन्होंने तो अपने सूबे का कुपोषण छिपाने के लिए जीरो की आड़ ले ली। कहा- 'जीरो फिगर के लिए लड़कियां खाती-पीती नहीं हैं और इसलिए दुबली दिखने लगती हैं।Ó अगर ऐसा है तो गरीबी का फिगर जीरो क्यों नहीं हो रहा, सीएम साहब। वह क्यों मुटिया रही है? भूख क्यों लाचार है फैलने के लिए?
आर्यभट्ट ने जब दुनिया को शून्य दिया तब उन्हें अंदाजा भी नहीं होगा कि इसके इतने भीषण प्रयोग होंगे। पहले गणित में शून्य था। अब शून्य में गणित हो रहे हैं। सबके अपने-अपने गणित । पहले शून्य समाधान था। अब शून्य सवाल है। हर शून्य का अपना सवाल। किसी के साथ जुड़कर उसे बड़े से बड़ा बना देने वाला शून्य, खुद कितना ही छोटा रहा हो, पर इतना असहज, असहाय और अनमना पहले कभी नहीं रहा होगा। उसे हर कदम पर ठगा जा रहा है। अगर आप संवेदना शून्य नहीं हैं, तो आइए शून्य के इस संधिकाल में उसके साथ खड़े हों। उसे भरोसा दिलाएं कि उसका ऐसा मखौल नहीं बनने देंगे। ध्यान रहे, शून्य सिर्फ अंक या शब्द नहीं है। शून्य सृष्टि का आदि है और अंत भी। और इन दोनों बिंदुओं के बीच यह समय के रथ का पहिया है।